महाराष्ट्र में नासिक के पास वणी गांव में देवी सप्तश्रृंगी का मंदिर है। ये मंदिर खास इसलिए है क्योंकि माना जाता है देवी ने यहीं महिषासुर का वध किया था। गोदावरी नदी के किनारे बने इस मंदिर में देवी की पूजा तीन महाशक्तियों यानी सरस्वती, काली और महालक्ष्मी के रूप में की जाती है। वहीं, कलकत्ता का काली घाट मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि ग्रंथों के मुताबिक वहां देवी सती के दाएं पैर की 4 अंगुलियां गिरी थी। गंगा नदी के किनारे बने दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देवी कालिका की विशेष पूजा की जाती है। यहीं रामकृष्ण परमहंस ने देवी की विशेष आराधना की थी। उनके द्वारा की गई देवी पूजा से जुड़े कई चमत्कार आज भी सुनाए जाते हैं। ये मंदिर शिव-शक्ति का प्रतिक है। यहां मुख्य मंदिर के चारो ओर शिवजी के 12 मंदिर बने हुए हैं।
सप्तश्रृंगी माता: सात पर्वतों की देवी
महाराष्ट्र के नासिक के वणी गांव में सप्तश्रृंगी देवी मां का यह मंदिर गोदावरी नदी के किनारे बना हुआ है। इस पर्वत पर पानी के 108 कुंड हैं। जो इस स्थान की सुंदरता को कई गुना बढ़ाते देते हैं। यहां देवी को ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्म देवता के कमंडल से निकली गिरिजा महानदी देवी सप्तश्रृंगी का ही रूप है।
मान्यता: यहीं हुआ था महिषासुर का वध
सप्तश्रृंगी की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के त्रिगुण स्वरूप में भी आराधना की जाती है। पौराणिक कथानुसार, महिषासुर राक्षस के विनाश के लिए सभी देवी-देवताओं ने मां की आराधना की थी तभी देवी मां सप्तश्रृंगी अवतार में प्रकट हुईं और इसी जगह पर उन्होंने महिषासुर का वध किया था।
काली मंदिर: शिव-शक्ति का प्रतिक
कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर है। ये विश्व में मां काली का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। भारत के सांस्कृतिक धार्मिक तीर्थ स्थलों में भी दक्षिणेश्वर काली मंदिर सबसे खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जान बाजार की महारानी रासमणि ने सपना देखा था, जिसके मुताबिक मां काली ने उन्हें निर्देश दिया कि मंदिर का निर्माण किया जाए। इस भव्य मंदिर में मां की मूर्ति श्रद्धापूर्वक स्थापित की गई है।
दक्षिणेश्वर मां काली के मुख्य मंदिर के भीतरी भाग में चांदी से बनाए गए कमल के फूल की हजार पंखुड़ियां हैं। इस पर मां काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। काली मां का मंदिर नवरत्न की तरह बना है। इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं।
देवी काली की प्रतिमा
दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देवी काली के प्रचंड रूप की मूर्ति मौजूद है। इस मूर्ति में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुण्डों की माला है। उनके हाथ में खड़ग तथा कुछ नरमुण्ड है। उनके कमर में भी कुछ नरमुण्ड बंधे हुए हैं। उनकी जीभ निकली हुई है। उनके जीभ से रक्त की कुछ बूंदें भी टपक रही हैं।
अद्भूत रामायण में बताया इस रूप के बारे में
अद्भूत रामायण ग्रंथ के मुताबिक एक और रावण था जिसे के हजार सिर थे। श्रीराम जब उस रावण से लड़ने गए तब उन्हें तीर लग गया और वो मुर्छित हो गए। ये देख सीताजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने काली रूप में उस रावण का वध कर उसके सिर काट दिए और उनके मुंडो की माला पहन ली। उनका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था तो शिवजी उनके सामने लेट गए। इसके बाद सीता स्वरूप देवी कालिका शांत हुई। इसलिए गुस्से को शांत करने के लिए इस रूप की पूजा की जाती है।
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