सोमवार दिन है भगवान शिव शंकर की आराधना का। उन्हें ही सृष्टि का पहला गुरु माना गया है। देवगुरु बृहस्पति और दैत्य गुरु शुक्राचार्य दोनों के ही गुरु भगवान शिव हैं। शिव के कई स्वरूप हैं और हर स्वरूप अपने आप में पूर्ण है। शिव को प्रथम अघोर भी कहा गया है। अघोर का अर्थ है जो घोर नहीं है, यानी जो किसी में भेदभाव नहीं करता, जो कभी किसी असमान व्यवहार नहीं करता, जिसके लिए सारी समान है, जो सारे अच्छे-बुरे भावों से मुक्त है।
शिव सिखाते हैं कि संसार में इंसान को अघोर होना चाहिए। तभी मोक्ष संभव है। घोर या भेदभाव, भला-बुरा, मेरा-तेरा का भाव आते ही वो मोक्ष के मार्ग से भटक जाता है। शिव के हर स्वरूप से कुछ ना कुछ सीख कर हम अपने जीवन में उतार सकते हैं। संसार को ज्ञान की पहली किरण दिखाने वाले भगवान महाकाल ने अपने को दुनिया में रहकर दुनिया से अलग रहना सिखाया है।
आइए, आज जगतगुरु शिव के स्वरूपों से सीखते हैं कि जीवन कैसा होना चाहिए.....
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